मध्यप्रदेश : कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में जिस ‘फार्मूले’ को अपनाकर सियासी ताना बाना बुना है पार्टी अब उसी आधार पर लोकसभा चुनाव से पहले की बड़ी रणनीति बना रही है। बताया यही जा रहा है कि न सिर्फ जातिगत समीकरणों, बल्कि उम्र के लिहाज से भी युवाओं को मौका देने के लिए पार्टी में मंथन हुआ है। मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस पार्टी अगले कुछ वक्त में ही देश के अलग-अलग बड़े हिंदी भाषी राज्यों में बदलाव करने वाली है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष के साथ प्रदेश की बनाई जाने वाली कार्यकारिणी में सभी सियासी समीकरणों को साधा जाना है। सियासी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए रविवार को पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों की एक बैठक भी हुई।
मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव हारने के बाद पार्टी ने सबसे बड़ा फैसला मध्य प्रदेश के लिहाज से लिया। कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पहले असमंजस इस बात पर बना था कि क्या कमलनाथ को पार्टी में बतौर अध्यक्ष आगे जारी रखा जाए या उनका रिप्लेसमेंट तय किया जाए। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के ही पक्ष में लगातार बने हुए थे। कई बैठकों के बाद जिस तरीके से जातिगत समीकरणों और उम्र को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन किया उससे अब आगे के राज्यों के रास्ते उसी पैटर्न पर खुल गए हैं। कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जिस बैठक में मध्य प्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा हुई उसमें यह तय किया गया कि सभी राज्यों में युवाओं की भागीदारी ज्यादा से ज्यादा रखी जानी है।
राजस्थान को लेकर आलाकमान को करनी पड़ रही मशक्कत
बैठक में इस बात पर भी मुहर लगी की लोकसभा चुनाव के नजरिए से अगले 30 दिनों के भीतर यह बड़े बदलाव कर लिए जाने चाहिए। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है जिन राज्यों में नेतृत्व का परिवर्तन होना है वहां पर पूरी राज्य कार्यकारिणी में नए सिरे से मध्य प्रदेश के पैटर्न को ही फॉलो किया जाए तो बेहतर होगा। पिछड़े, दलित और ओबीसी समेत सवर्णों को मजबूत हिस्सेदारी भी देनी है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि नई कार्यकारिणी या प्रदेश की वर्तमान कार्यकारिणी में फेरबदल को लेकर उत्तर भारत के सभी राज्यों में यह फॉर्मूला अपनाया जाना है। बैठक में शामिल कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक सूत्र बताते हैं कि मशक्कत मध्य प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा राजस्थान को लेकर हो रही है।
दरअसल, राजस्थान में जिस तरीके से पार्टी आला कमान ने पर्यवेक्षकों को भेजा और उसके बाद कोई नतीजा नहीं निकला। उससे पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज भी है। कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजस्थान में अभी भी कांग्रेस की वही मशक्कत चल रही है जिसको लेकर चुनावों से पहले की प्रतिस्पर्धा थी। लेकिन पार्टी आलाकमान ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लिए गए फैसले के तुरंत बाद राजस्थान में प्रदेश कार्यकारिणी समेत नेता प्रतिपक्ष को घोषित किए जाने की बात कही है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राज्य में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के आपसी मनमुटाव के चलते ही व्यवस्थाएं नहीं बन पा रही हैं। लेकिन आलाकमान की ओर से मिले निर्देश के मुताबिक, मध्य प्रदेश के पैटर्न पर ही राजस्थान में भी बदलाव का पूरा खाका खींचा गया है। राजस्थान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा कहते हैं कि दो राज्यों की तरह राज्य में भी जल्द ही फैसला हो जाएगा।
इन राज्यों में पार्टी की कमजोरियां दूर करने के निर्देश
कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सिर्फ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब समेत यूनियन टेरिटरी चंडीगढ़ और जम्मू कश्मीर में भी पार्टी की सभी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर भारत के उन सभी राज्यों में मध्य प्रदेश में हुए बदलाव को एक बड़े परिवर्तन और उम्मीद के तौर पर देख रही है और उसी सियासी बिसात पर आगे की रणनीति बना रही है। यही वजह है कि इन सभी राज्यों में होने वाले कार्यकारिणी के पूरे बदलाव या फिर आंशिक बदलाव में मध्य प्रदेश का अक्स दिखना तय माना जा रहा है। पार्टी ने अगले दो हफ्ते के भीतर इन सभी राज्यों में कार्यकारिणी की पूरी रूपरेखा मांगी है। जिन राज्यों में हाल में ही कार्यकारिणी का गठन किया गया है उसका सियासी समीकरण समझते हुए आगे की रणनीति बनाई जा रही
है।
कमजोर-निष्क्रिय नेताओं के लिए आए ये निर्देश
कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि पार्टी आला कमान की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि कमजोर और निष्क्रिय नेताओं की सूची बनाकर उनको किसी दूसरी भूमिका में रखा जाए। क्योंकि उदयपुर में हुए चिंतन शिविर के दौरान यह तय किया गया था कि पार्टी में ज्यादातर 50 साल से कम उम्र के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। लेकिन कांग्रेस पार्टी में अभी तक उसका पूरी तरीके से पालन नहीं हो सका है। मध्य प्रदेश में दलित, ब्राह्मण और ओबीसी के कॉन्बिनेशन के साथ जिस तरीके से युवाओं को तरजीह दी गई है पार्टी नेता उसको जीत का फार्मूला मान रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की हाल में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल पार्टी के एक नेता बताते हैं कि उस बैठक में भी इस बात का जिक्र हुआ कि अगर एमपी फार्मूले पर ही सियासी विसात को बिछाया जाए तो लोकसभा चुनाव के नतीजे भी बेहतर हो सकते हैं।