उज्जैन ।
भगवान श्री कृष्ण द्वापर युग में भादो मास की अष्टमी तिथि पर जन्म लिए थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ था तो वहीं भगवान कृष्ण का मध्य प्रदेश से भी गहरा रिश्ता है और उनकी शिक्षा दीक्षा मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित सांदीपनि आश्रम में हुई थी। यहां उन्होंने 64 दिनों तक रहकर 64 तरह की शिक्षा को ग्रहण किए थे। यही वजह है कि कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का मध्य प्रदेश में भी उत्साह है। खास तौर से उज्जैन और सांदीपनि आश्रम में तो भक्तों का उत्साह एक अलग अंदाज में इस वर्ष भी नजरआ रहा है।
नींबू और भुट्टो से सजा मंदिर
सांदीपनि आश्रम में बना हुआ मंदिर को महिला मंडल के भक्तों द्वारा आकर्षक तरीके से तैयार किया गया है। इस मंदिर को नींबू और भुट्टा से सजाया गया है।तो वही पूरे आश्रम को आकर्षक लाइट से बेहतर लुक दिया गयाहै।
11 साल की उम्र में आए थे मध्य प्रदेश
भगवान कृष्ण के उज्जैन स्थित संदीपनी आश्रम में रहने को लेकर यहां के पुजारी का कहना है कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण यहां 64 दिनों तक रहे थे। उनकी उम्र उस समय 11 वर्ष 7 दिन की थी और वह अपना जनेऊ संस्कार करने के बाद आचार्य सांदीपनि जी के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए पहुंचे थे । 64 दिनों में ही उन्होंने 64 तरह की विधाएं सीख ली थी ।
इस तरह से ग्रहण की शिक्षा
मंदिर के पुजारी की माने तो 11 साल की उम्र में भगवान कृष्ण ने जो 64 दिनों में 64 तरह की शिक्षाएं ग्रहण किए थे उनमें 16 दिन में कला शिक्षा चार दिन में वेद 6 दिन में शास्त्र और 18 दिन में पुराण एवं 20 दिन में गीता का ज्ञान प्राप्त कर लिया था । शिक्षा ग्रहण करने के कारण भगवान कृष्ण का मध्य प्रदेश और उज्जैन से गहरा लगाव था तो वही उनके जन्म उत्सव को लेकर यहां के लोगों में अच्छा उत्साह रहता है।
दुनिया में एकलौती है ऐसी उनकी प्रतिमा
बताते हैं कि उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में भगवान कृष्ण की अलौकिक इकलौती ऐसी प्रतिमा है जो दुनिया में कहीं नहीं है । इस प्रतिमा में भगवान कृष्ण शिक्षा ग्रहण करने की स्थिति पर बैठे हैं और उनकी बैठी हुई प्रतिमा स्थापित है जबकि अन्य मंदिर मठ मंदिरों में भगवान कृष्ण की प्रतिमा बांसुरी बजाते हुए खड़े स्थिति में या फिर अन्य स्थिति में बनी हुई है जबकि सांदीपनि आश्रम में बैठे हुए की प्रतिमा इकलौती है ।
काशी से उज्जैन आए थे आचार्य संदीपनि
आचार्य सांदीपनि उत्तर प्रदेश के काशी से मध्य प्रदेश के उज्जैन आए थे। बताते कि उनके पुत्रों की मौत हो जाने के कारण वह उज्जैन पहुंचे और यहां घोर अकाल पड़ा हुआ था जिसके चलते उन्होंने भगवान महाकाल की पूजा अर्चना करके प्रार्थना किया और इस अकाल से प्रदेशवासियों को मुक्ति मिली तो वही उन्होंने उज्जैन में आश्रम बनाकर अपने शिष्य भगवान कृष्ण का इंतजार करते रहे और जब भगवान 11 वर्ष के हुए तो उनके आश्रम में पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही उनके मृत पुत्रों को जीवन दान दिया था।